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श्रीकाशी गुरुकुल सेवा न्यास
आपका हार्दिक स्वागत करता है |
|| चरैवेति चरैवेति चरन्वै मधु विन्दते ||
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|| सत्यश्रमाभ्यां सकलार्थसिद्धि: ||
काशी पुण्यतमा विमुक्तिनगरी सालंकृता गंगया
तत्रेयं मणिकर्णिका सुखकरी मुक्तिर्हि तत्किंकरी |
स्वर्लोकस्तुलितः सहैव विबुधै: काश्यां समं ब्राह्मणाः
काशी क्षोणितले स्थिता गुरुतरा स्वर्गो लघु खे गतः ||
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|| न्यायात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः ||
गंगातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरंतरविभूषितवामभागम् |
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् |
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|| वसुधैव कुटुम्बकम् ||
नमोsस्तु ते व्यासविशालबुद्धे, फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र। येन त्वया भारततैलपूर्ण: प्रज्वालितो ज्ञानमय: प्रदीप:।।
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  काशी गुरुकुल में अगले सत्र के लिए प्रवेश की तिथि जल्द घोषित की जाएगी।

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|| तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु ||

                  ” यदि संकल्प शुद्ध हो तो उसको साकार करने के सारे विकल्प परमात्मा स्वयं प्रदान करता है तथा इमानदारी से किये जाने वाले हामारे सात्विक प्रयासों को ईश्वर सम्बल प्रदान करता है |
अतः हम सभी को भारतीय आर्ष-मनीषा की चिन्मयी चिंतनधारा को अपने आचरण की पवित्रता के साथ व्यवहार में प्रदर्शित करते रहना चाहिए जिससे आत्मचिंतन और अपने स्वस्वरुप प्राप्ति का मार्ग सुगम हो सके |
इसके लिए हम सभी को त्रिकाल संध्या, देव-पितृ कार्य, स्वाध्याय, अन्नदान, श्रेष्ठों का सम्मान और निरंतर परमात्मचिंतन करना चाहिए |

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    उत्तरवाहिनी गंगा के सुरम्य तट पर वरूणा और असी नदी के मध्य में अवस्थित पञ्च कोषात्मक और तीन खंडो से युक्त भगवती श्री काशी नगरी प्राचीन काल से ही हिंदुओं के लिए परम तीर्थ स्थान रही है जहां भगवान विश्वनाथ माँ अन्नपूर्णा के साथ नित्य निवास करते है | माँ अन्नपूर्णा जहाँ प्राणीमात्र के लिए अन्न-जल की व्यवस्था करती है वहीँ भगवान शिव प्राणिमात्र के लिए ज्ञानमार्ग को प्रशस्त करते है | भगवती के 64 शक्तिपीठो में से एक शक्तिपीठ यहीं पर अवस्थित है जिसे विशालाक्षी के रूप में जाना जाता है | काशी को ही वाराणसी और बनारस नाम से भी जाना जाता है | काशी में देहत्याग सौभाग्य का सूचक माना जाता  है |  व्यक्ति जन्म-मरण के चक्रों से सर्वदा के लिए मुक्त हो जाता है | वास्तव में यह काशी नगरी तीनों लोकों से न्यारी है जहां एक साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अपने सर्जक, पोषक एवं  अविमुक्तेश्वर सहित  तैतीस कोटि देवी-देवताओं तथा समस्त तीर्थों से समन्वित और सनाथित होता है  |………… सो काशी सेईय तत्काला |

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|| सत्यश्रमाभ्यां सकलार्थसिद्धि: ||

सत्य तथा परिश्रम से किये प्रत्येक कार्य सिद्ध होते है | इसी विश्वास के साथ काशी गुरुकुल की नीव रख गई है ताकी हम गुरुकुल के मध्यम से समाज के साधनहीन व्यक्तियों के जीवन की मूलभूत
आवश्यकताओं को पूर्ण करने, शिक्षित बेरोजगारों को उनकी योग्यता के अनुरूप तकनीकी एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान कर उन्हें रोजगार का अवसर उपलब्ध कराने,
में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सके |

हमारे पदाधिकारी

मंगलानुशासन / उद्बोधन मन्त्र

 संगच्छध्वम् संवद्ध्वम्, सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे, संजानानामुपासते।।.” समानो मंत्रः समिति समानी, समानं मनः सह चित्तमेषाम्।समानी व आकूतिः समाना हृदयानि व, समानवस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति।         ….ऋग्वेद  

                सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमद। सत्यान्न प्रमदितव्यम्। धर्मान्न प्रमदितव्यम्। भूत्यै न प्रमदितव्यम्। स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्। देवपितृकार्यभ्यां न प्रमदितव्यम्। मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। अतिथिदेवो भव। यान्यनवद्यानि कर्माणि, तानि सेवितव्यानि, नो इतराणि। यान्यस्माकं सुचरितानि, तानि त्वयोपास्यानि, नो इतराणि। श्रद्धया देयम्। अश्रद्धयादेयम्। श्रिया देयम्। हृया देयम्। संविदा देयम्। भिया देयम्। एष आदेशः एष उपदेशः। एतदनुशासनम्। एवमुपासितव्यम् एवम् चैतदुपास्यम्।”    ….. तैत्तिरीय उपनिषद्

       

Kashi Gurukul
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हमारे आचार्य / आचार्या